"कुछ असरार "
ना मैं कोई लेखक हूँ ना मैं शायर बनने आया हूँ ,
रूखे तस्सव्वुर को सूखे कागज़ पर रखकर आपके रूबरू करने लाया हूँ !
-----------------------------------------------
बहुत देख ली नफरत अब मोह्हबत की गिरफ्त में जाने का जी करता है
बहुत जाग लिया मुन्तजिर बन मैं बातों में, अब तनहा रात के पहलु में सोने का जी करता है !
------------------------------------------------
मैं वादे नहीं करता पर कोशिशे अक्सर किया करता हूँ
वादे अब टूटने लगे है कोशिशो में अब भी जान बाकी है
---------------------------------------------------
~"नीरज"~
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें