शनिवार, 14 जुलाई 2012

 एक मैं ही हूँ ......


 

एक मैं ही हूँ ............ जिसे हर शख्स बड़ा नजर आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माँ के आँचल में स्वर्ग नज़र आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माता-पिता में विधाता का रूप नज़र आता है 

एक मैं ही हूँ ............जिसे गम नहीं सताता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे हर मुश्किल का हल नज़र आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे पैसा नहीं लुभाता है 

एक मैं ही हूँ ............जो चैन की नींद सो पाता  हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो सुबह शाम  माँ  की लोरियों में खो जाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो परायो में भी अपना हो जाता हूँ 

एक मैं ही हूँ ............जिसे हर फिजा सुहानी लगती है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माँ  अपनी दीवानी लगती है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे मिल जाये खिलौना तो हर चीज़ बेगानी लगती है 

एक मैं ही हूँ ............जो हर वक़्त तुतलाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो हर बात माँ को बतलाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............ जो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता  हूँ 

बस एक मैं ही हूँ ............इंसान इस दुनिया में , बाकियों  में मुझे शैतान नज़र आता है । 

~"नीरज "~

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