मेरे गीतों
अब पता चला की
कलम पर जोर चलता नहीं
लफ़्ज़ों का शोर होता नहीं
बहुत देर से बैठा हूँ कागज़ कलम लिए
तखय्युल के आँगन में सवेर से
आ जाये नज़्म कहीं किसी और से
अब तंग आ गया हूँ इस इंतज़ार से
मेरे नाज़रीन मुन्तजिर है मेरे बहुत देर से
कौन सा मुंह लेकर अब मैं जाऊंगा
कैसे मैं उनसे नज़रे मिलूंगा
वो तलाश करेंगे चेहरे पर गीत मेरे
मैं उन्हें तस्सव्वुर की आसूदगी तक कैसे पहुँचाऊँगा
आ जाओ मेरे गीतों
मेरे प्यारे मन मीतों
बक्श दो तौफिक मुझे अपने प्यार की
तेरे आँचल में बैठा हूँ आश में तेरे दुलार के
बीत चुकी दो - पहर रात की
अब तो आ ही जाओ हद हो गई इंतज़ार की ।
~"नीरज"~
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