मंगलवार, 29 मई 2012

फेसबुक


(मेरी लम्बी कविता "facebook" के कुछ सम्पादित अंश )

हर चेहरे पर चर्चे हैं "facebook" के

दोस्त बनाते है हम देश दूर के
फोटो चिपकाते है "close look " के
दोस्त चिढाते भी है Poke Poke के

username के साथ जब password कोई लिखता है

और login के button पर जैसे ही चटखा (click) लगता है
एकाएक दिल धडकता है |

कुछ notification होंगे जिन्हें पढ़कर दिलो को कुछ satisfaction मिलता है

कुछ अनजाने चेहरे दोस्ती का हाथ लिए खड़े होते है
कुछ सन्देश, reply के इंतजार में पड़े होते है |

बेहतरीन अल्फाजों से, ताज़ातरीन समाचारों से ,

खुबसूरत तस्वीरों से दीवार सजी होती है
बस जल्दी से like करने के इंतज़ार में खड़ी होती है |

सुख से दुःख तक सब छपता है इसकी दीवारों पर

हर कोई टिप्पणी करता है एक दुसरे के विचारो पर

पुरानो के बाद कुछ नये भी यहाँ रोज़ आते है

प्रोफाइल बनाते है, द्रश्य चित्र HD लगते है
smiley रूप में मुस्कुराते है
शिक्षा, दीक्षा सारी बताते है
पर झूठ की बीमारी को यहाँ भी साथ ले आते है |

रोज़ नये चित्र सजाये जाते है

tag लगाकर दोस्त उनपर चिपकाये जाते है
फिर झूठी ही सही तारीफों का सिलसिला चलता है
कुछ आँख मिचकाए, कुछ जीभ चिढाये जाते है |

अरे ! ये तो मेरे साथ दसवी में था

अरे ! ये तो मेरे साथ बस में था
अरे ! ये तो वही नुक्कड़ वाला नाई है
अरे ! ये तो मेरे फुंफाजी का भाई है

ऐसे पहचान निकलते है जैसे जिगर से जान निकलते है

फिर सबको मैत्री का पैगाम भेजा जाता है
जुड़ते ही दोस्ती का पहला सलाम भेजा जाता है |

झूठी तारीफे पाकर ऐसे खुश होते है की भारत रत्न मिला हो

copy paste कर के ऐसे इतराते है जैसे इनका ही यत्न लगा हो

अब समयरेखा (timeline) आ गई है जो सबके मन को भा गई है

मार्क जुकरबर्ग की शादी तो पुरे वातावरण में छा गई है
यह तो समझदार था इसकी मति क्या घास चरने गई है

और सुनो ~

जैसे ही female लिखा दिखता है
झट से add friend पर चटखा लगता है
पुरुष बेचारे मेरे जैसे
यहाँ भी मुफलिसी का सामना करना पड़ता है |

कुछ हरी बत्ती जगा कर अपने होने का अहसास करवाते है

और कुछ offline mode में यहाँ भी दुरी चाहते है
कुछ ने आमिर की फोटो यूँ लगाई है
जैसे कोई मेरे दूर के रिश्ते का भाई है
कुछ ये बताते है की मैं भी हूँ
कुछ ये जताते है की मैं ही हूँ |

जो शामे हरे पत्तो की सोहबत में कटा करती थी (we used to play in gardens.)

वो अब हरी बत्ती की ग़ुरबत में गुजर जाती है |

शुक्र है ! मार्क जुकरबर्ग को आरक्षण का ख्याल नहीं आया

इसीलिए यहाँ दोस्तों की list में आंकड़ों का मायाजाल नहीं लाया
वरना OBC को 5 extra friend मिलते
और GENERAL को दिन में 2 बार ही login के मोके मिलते |

 


~"नीरज"~
 
( यह पुर्णतः मेरी मौलिक रचना है | सर्वाधिकार सुरक्षित )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें