शनिवार, 10 नवंबर 2012


गरीबी होश देती है 

अमीरी मदहोश कर देती है 

पैसा जोश देता है 

मुफलिसी जूनून देती है 

दौलत गुरुर देती है 

शोहरत सुरूर देती है 

इसां नशे  में मगरूर रहता है 

बदनाम सा मशहूर  रहता है 

गरीबी  भूख देती है 

मुफ्त में कुछ अनमोल सी सीख देती है !

~ "नीरज " ~


 "पुरसुकून कैफियत "
मुफलिसी से मेरा "राबता" पुराना  हैं 

मेरी झोपडी ही मेरा आसरा -ओ-आसना  हैं 

गरीबी और बदकिस्मती मेरी बहने हैं 

जिन्हें कोई वर मिलता नहीं 

ढूंढ़  रहा हु पर कोई अच्छा  घर मिलता नहीं

कोशिश,प्रयास  और यत्न ही मेरा धन हैं 

और जब तक यह धन हैं कोई नहीं कह सकता की " यह निर्धन है "

एक निर्मल मन है जिसमे ख्वाबो का नशेमन है 

"भूख" और "लाचारी" मेरे दो अनमोल रतन है 

चिपके रहते है सीने से जैसे जन्मो  का बंधन है !

~ "नीरज " ~


रविवार, 16 सितंबर 2012

"घर में मोह्ब्बत रहती है 
महलो में शोहरत  ,
कारो में गुरुर चलते है 
ठेलो पर घर चलते है "
"~नीरज~"

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

"कुछ असरार  "



ना मैं कोई लेखक हूँ ना मैं शायर बनने आया हूँ ,
रूखे तस्सव्वुर को सूखे कागज़ पर रखकर आपके रूबरू करने लाया हूँ !
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बहुत देख ली नफरत अब मोह्हबत की गिरफ्त में जाने का जी करता है 
बहुत जाग लिया मुन्तजिर बन मैं बातों  में, अब तनहा रात के  पहलु में सोने का जी करता है ! 
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मैं वादे नहीं करता पर कोशिशे अक्सर किया करता हूँ
वादे अब टूटने लगे है कोशिशो में अब भी जान बाकी है
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~"नीरज"~

 

शनिवार, 18 अगस्त 2012

"गुलज़ार बाबा"



जब भी तुम्हे देखता हु,एक ही बात महसूस करता हु
ख्याल जैसे रुक से गये हैं
कायनात से सम्बन्ध  टूट से गये हैं
तहरीर हो तुम सी नहीं ही, बाबा
पर कैफियत तुम्हारी पकड़ने की कोशिश करता हूँ
तुम्हारी ख्यालों  की आंच में  अपने अध-पके से
तस्सव्वुर सेकता हूँ , बाबा
सफ़ेद लिबास में इतने रंग बिखेर जाते हो,बाबा
मैं समेटते समेटते दुनिया से मुक्तलिफ़ हो जाता हु
समेट कर सभी रंगों को झोली में,
फिर भी मुफलिस रह जाता हूँ ,बाबा
अब की बार जो जाओ तुम सरहद  पार मिलने मेहँदी हसन से,
तो मुझे भी साथ ले जाना,बाबा
सुना है सरहद पार ,अदब को सत्कार बहुत मिलता है
सुना है सरहद पार दिलो में प्यार का गुल खिलता है
सफ़ेद लिबास में खिलखिलाते,बाबा
तुम्हे जब देखता हु, आंखे पढने की कोशिश करता हूँ ,
तुम्हारे हाथो में कुछ तलाश करता हूँ
कहीं कोई सुराग मिल जाये, ख्याल आते कहाँ  से हैं
मुझे भी कोई मार्ग मिल जाये
इतना कैसे लिख लेते हो, तस्सव्वुर थकता नहीं तुम्हारा
उड़ेल देते हो हर ख्याल को कागज पर
और बन जाती है एक सुन्दर नज्म आखिर में जाकर
तुम्हारे महकते तस्सव्वुर के बाग़ को अक्सर निहारता हूँ
गुंचा-ओ-कली-ओ-फूल, पतिया सभी तरास कर सजाये है तुमने, बाबा
पेड़ों के  के ताने  भी मजबूत उगाये है तुमने
कोई कली  या पत्ती चुरा के सोचता हूँ
इससे अपनी बगिया मह्काऊँगा
फिर ख्याल आता है इसको चिपकाने वाला गूंद कहा से लाऊंगा
अब रातो को जागने का सबब दिया है तुमने, बाबा
चाँद तारों से गुफ्तगू करना सिखा दिया है तुमने, बाबा
अब रातो को तन्हाई महसूस नही होती
ज़माने की रुसवाई भी अब मायूस नहीं करती,बाबा
अक्सर चाँद तारो के बीच चला जाता हु
हाल उनका पूछने कुछ अपना बताता हु,बाबा
चाँद शिकायत करता  ही तारो से
तारे भी उलाहना देते है चाँद को
अमावस्या को ये चला जाता है मिलने अपने हबीब से
कहकशा भी  अब तो अपनी बुआ  लगती है
अब सुच में मुझे उसकी हर दुआ लगती है
सब तुम्हारी कही बाते याद आती है, बाबा
रातो को अक्सर तुम्हारी नज्मे आकर सुला जाती है,बाबा
इक तुम्ही हो जो न्यूयोर्क में भी चीटियों को दाना डालते हो,
पहाड़ों पर भी रात  का मज़ा लेते हो,
जुलाहे को अपनी बातो में बहला लेते हो,
बारिश को भी भिगो देते हो,
ब्रह्माण्ड को घुमा देते हो बाबा
इक तुम्ही हो जो मेरे अपने लगते हो,बाबा
आंधी में तुम नूर जलाये रखते हो
इक खुशबू की तरह जेहन को महका जाते हो
मौसम को मासूम बना देते हो,बाबा
मेरे मासूम सवालो से तुम परेशां तो होते हो
पर हैरान नहीं बाबा
दिल से दिल की किताब पढ़ते हो
इब्बे ग़ालिब लगते हो,बाबा
चप्पा चप्पा चरखा चलते हो
इस उम्र में भी इश्क फरमाते हो
क्योकि दिल को बच्चा बताते हो
और कजरारे नैनो वाली बबली चाहते हो बाबा
भारत का जय घोष दुनिया को सुनते हो बाबा
ग्रेमी  जैसे पुरस्कार तुम ही ला सकते हो बाबा
और सुनो
जंगल में फूल तो बहुत से खिलते हैं  पर
चड्डी पहन कर तुम ही खिलते हो बाबा
इक "बोस्की" ही तुम्हारी बेटी नहीं ही बाबा
तुम हमें भी अपने पिता ही लगते हो बाबा
त्रिवेणी कोई तुम सी लिखे तो मैं जानू
जो कोई खयालो में तुमसे जीत जाये तो मैं सिकंदर मानू
अब रोज सपनो में आते हो बाबा
क्योकि सपनो की सरहद कोई होती नहीं
और सपनो में ही मेरे जेहन को सहला जाये हो,बाबा
क्योकि सपनो में  appointment  की जरूरत नही होती
ग़ज़लजीत जो इक तुम्हारे यार होते ही बाबा
वो भी  कमाल के खुद्दार होते ही बाबा
अभ्र सा बरसते है वो रूह,दिल-ओ-दिमाग
सब तर कर जाते है
अब हम उनकी आवाज को तरसते है,बाबा
सुना है अब वो खुद की आरामगाह में
अपनी मीती आवाज़ में परवाज ओ मिराज सुनाया करते ही,बाबा
हजारो ख्वाहिशे होती नहीं बाबा
बस इक फरमाइश है मेरी,जो तुम मिल जाओ हक्कीकत में तो बस तुम्हारी बाहों में उम्र निकले ,बाबा
बात जो तुम्हारे होठो से निकलती है
वही पुरजोर लगती है ,बाबा
मैं तुम्हारी नज्मे संभल कर रखता हु
जैसे जेवर सम्भालता हो कोई
अबकी बार जो मिलूँगा तुमसे बाबा
पोटली भर के सवाल रखूंगा युम्हारे सामने,बाबा
मसलन गीत कैसे लिख लेते हो
काफिये को ग़ज़ल में कैसे कैद कर लेते हो
रदीफ़ ओ काफिये का खयालो से कैसे मेल करते हो,बाबा
और इक सवाल जो बचपन से मुझे झकझोर रहा है
ये चडी पहन के फूल कैसे खिलाते हो,बाबा
और इक जरुरी बात जो सिकना चाहुँगा
अलिफ़ पे वे कैसे चढ़ा देते हो बाबा
अपनी आवाज़ में कशिश कहा से लेट हो
और नाज़रीन की आँखे कैसे पढ़ पते हो बाबा


~"नीरज "~

रविवार, 5 अगस्त 2012

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............

इस भीड़ में एक तन्हा ढूंढ़ रहा हूँ

इस दर्द भरी जिंदगी में एक हमदर्द ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ

 

जीवन के सफ़र का हमदर्द ढूंढ़ रहा हूँ

बेगानों की महफ़िल में एक अपना ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ

 

सभी दर्दो का एक मरहम ढूंढ़ रहा हूँ

शैतानो की दुनिया में एक इंसान ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ

 

इन कंटीली राहो पर एक फूल ढूंढ़ रहा हूँ

अमीरों की भाषा में एक फकीर ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ

 

जीने का फलसफा ढूंढ़ रहा हूँ

कही न मिलने वाला एक अनमोल जगीना ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ

 

दोस्त मिलने तक दोस्त का इंतज़ार कर रहा हूँ

मरने से पहले जीने का एक सहारा ढूंढ़ रहा हूँ

दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ .............एक दोस्त ढूंढ़ रहा हूँ


शनिवार, 14 जुलाई 2012

 एक मैं ही हूँ ......


 

एक मैं ही हूँ ............ जिसे हर शख्स बड़ा नजर आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माँ के आँचल में स्वर्ग नज़र आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माता-पिता में विधाता का रूप नज़र आता है 

एक मैं ही हूँ ............जिसे गम नहीं सताता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे हर मुश्किल का हल नज़र आता है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे पैसा नहीं लुभाता है 

एक मैं ही हूँ ............जो चैन की नींद सो पाता  हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो सुबह शाम  माँ  की लोरियों में खो जाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो परायो में भी अपना हो जाता हूँ 

एक मैं ही हूँ ............जिसे हर फिजा सुहानी लगती है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे माँ  अपनी दीवानी लगती है 
एक मैं ही हूँ ............जिसे मिल जाये खिलौना तो हर चीज़ बेगानी लगती है 

एक मैं ही हूँ ............जो हर वक़्त तुतलाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............जो हर बात माँ को बतलाता हूँ 
एक मैं ही हूँ ............ जो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता  हूँ 

बस एक मैं ही हूँ ............इंसान इस दुनिया में , बाकियों  में मुझे शैतान नज़र आता है । 

~"नीरज "~

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

मेरे गीतों 


अब पता चला की 
कलम पर जोर चलता नहीं 
लफ़्ज़ों का शोर होता नहीं 
बहुत देर से बैठा हूँ कागज़ कलम लिए  
तखय्युल के आँगन में सवेर से 
आ जाये नज़्म कहीं किसी और से 
अब तंग आ गया हूँ इस इंतज़ार से 
मेरे नाज़रीन मुन्तजिर है मेरे बहुत देर से 

कौन  सा मुंह लेकर अब मैं जाऊंगा 
कैसे मैं उनसे नज़रे मिलूंगा 
वो तलाश करेंगे चेहरे पर गीत मेरे 
मैं उन्हें तस्सव्वुर की आसूदगी तक कैसे पहुँचाऊँगा 

आ जाओ मेरे गीतों 
मेरे प्यारे मन मीतों 
बक्श दो तौफिक मुझे अपने प्यार की 
तेरे आँचल में बैठा हूँ आश में तेरे दुलार के 
बीत चुकी दो - पहर रात की 
अब तो आ ही जाओ हद हो गई इंतज़ार की ।
~"नीरज"~


 

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

काश ! ये भी होता

 

काश ! भगवान थोडा सा advance हमें भी बनाते
बिल गेट्स की  कल्पनाओ के पात्र हमें भी बनाते

काश ! windows की तरह हमारे भी shortcut होते
दुःख आने पर ctrl +z  और खुशियों को ctrl +y  कर पाते

काश ! हमारे system  का भी restore point होता
हम भी safe mode  में start हो पाते

काश ! इस शरीर को भी format कर पाते
virus आने पर antivirus load कर पाते

काश ! ज़िन्दगी में भी cheat code होते
मुश्किलों को cheat  लगाकर भगा देते

काश ! एक NIC  हमे भी लगा होता और
दुःख-सुख पूरे network में share होता

काश ! हम भी RAM की तरह Upgrade  हो पाते
उम्र बीत जाने पर फिर Update हो जाते

काश ! हमारा cabinet भी लोहे का बना होता
ऊपर set & reset का button लगा होता

काश ! हर मुश्किल का हल google पर search कर पाते
direct ईश्वर को email कर पाते (heyishwar@myprabhu.com)

काश ! एक web application हमारी भी बनी होती
ADMIN के सभी rights GUEST को दिए होते

काश ! stroustrup (bjarne stroustrup) की OOPS का हिस्सा बन पाते
तो कभी inherit हो जाते तो कभी inherit कर पाते

काश ! इस भागमभाग में शरीर को stand by  कर पाते
थक जाने पर हम भी shutdown हो जाते

काश ! हमारा memory card भी GB में होता
 और data non-removable होता

काश ! Trojan Removal की तरह
हमारे पास भी एक tension removal होता

काश ! काश ! काश !
हमारी life  में काश ! ना होता
सब कुछ computer की तरह perfect and exact होता । 

~"नीरज "~

शनिवार, 30 जून 2012



कागज़ और कलम थाम तो लिए है 
देखो महफ़िल कहाँ तक चलती है ।

तस्सव्वुर के बादबाँ बाँध तो लिए है 
देखो मंजिल कहाँ पर मिलती है ।

~"नीरज"~

शनिवार, 23 जून 2012

कोई तो होता जिस पर  . . . . .


कोई तो होता जिसपर  दिल की किताब लिखते 
दीबाचे में तेरा ही सिर्फ तेरा नाम लिखते 
कोई तो होता जिस पर 


पहले ही हर्फ़ में अपने मोहब्बत का बयां लिखते 
जो कलम चलती आगे तो तेरा जिक्र-ए - जमाल लिखते .
कोई तो होता जिस पर 


अगली ही तहरीर में तेरी वो शगुफ्ता  सी तस्वीर खुलेआम लिखते 
बाते जो होती थी जुम्मेरात को, उन्हें हम इनाम लिखते
कोई तो होता जिस पर


तेरे रुखसारो पर उठे फिकरों का भी हम राज लिखते 
जो कोई होता तो वो तमाम कैफियत हम आज लिखते
कोई तो होता जिस पर


जो बातें कुछ और होती वो तेरा शर्मा के सिमट जाना 
वो तेरा इतरा के रूठ जाना भी लिखते 
कोई तो होता जिस पर


वो तेरी जुल्फों पर बनी गज़लों का हम अर्ज लिखते 
जो हिम्मत और बाकी होती तो पिछले स्याह पन्नो पे तेरा हिज्र लिखते
कोई तो होता जिस पर

आखिर में जो हमारा तखल्लुस पूछा जाता तो 
बस "आशिक गुमनाम" लिखते
कोई तो होता जिस पर



~"नीरज"~


बुधवार, 20 जून 2012

 "सालगिरह मुबारक"


~हमारे अज़ीज़ मित्र दीपक आचार्य "गाफिल " के जन्मदिन पर उनको समर्पित  चंद अल्फाज़ ~


 



दीपक को सालगिरह मुबारक हो, साल के हर आज और कल मुबारक हो ,
हर शब् तेरी शुकून से गुजरे, हर सहर में तुझे सफलताओ का अम्बार मिले,
हर इन्सान हबीब मिले न तेरा कोई रकीब बने !
नए साल की नयी आगाज़ मुबारक हो, बुलन्दियो की हर परवाज़ मुबारक हो |
फलक तक तुम चलो, आसमा की सीढ़ी चढो ,
दुनिया की हर रहगुजर के राहबर बनो,
ता उम्र तालिब-ए-इल्म रहो, आलिम-फ़ाज़िल बनो ,
दिल तुम्हारा महल हो , दुखो से खुशियों का वसल बनो ,
सिराज (दीपक) तुम हो तो  हर महफ़िल को रोशन करो |
एक उम्दा इंतेखाब तुम बनो, लफ्जों का लुघत आगोश में भरो ,
हर मुबर्ज़त को सेहन करो |
हमारी इत्तिहाद (दोस्ती) पर नाज़ हो , सारी  कायनात पे तेरा राज़ हो ,

मुसीबत न कभी तुझसे मिले, न तू कभी उदास हो,
इस गुल-ए-रुख को सदा रोशन रखना ,
न जुल्मत मिले न गर्दिश से तेरा वास्ता हो ,
तेरी चश्म (आँखों) में सदा महताब मिले |
न मेरे पास हर्फ़ (शब्द) के समंदर है न अल्फाज़ मिल रहे है ,
लखत-ए-जिगर तुम मेरे यार हो ,
क्या तेरी तारीफ़ करू -" मेरे उम्दा राजदां सुखनवर हबीब जितना मयस्सर हो , तुझे सद-रंग आशना मिले |"
            "आमीन"



~"नीरज "~

रविवार, 17 जून 2012

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !


चलो जो हुआ अच्छा हुआ !
अच्छा हुआ जो गम मिला
ख़ुशी का महत्व तो पता चला
लोगों का अपनत्व तो पता चला
कहाँ हूँ मैं, पानी का स्तर तो पता चला |

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !

अच्छा हुआ जो दुःख आया
बुराई सहने की ताकत तो साथ लाया
अपने और पराये की पहचान तो कर पाया
अब तस्सव्वुर का अक्स तो साफ़ नज़र आया |

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !

अच्छा हुआ जो कुछ समय के लिए अंधकार आया
प्रकाश का मोल तो समझ में आया
दूध में पानी का घोल तो समझ में आया
जीवन है अनमोल, यह तो समझ में आया
कुछ नहीं है मेरे हाथ में, यह तो टटोल पाया |

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !

अच्छा हुआ जो मैं रो पाया
आँख का मैल तो धो पाया
मेरी गलतियाँ है कहाँ-कहाँ यह तो देख पाया |

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !

अच्छा हुआ जो बेकरारी मिली
आँखे बहुत देर बाद जाकर खुली
लगता है जैसे राहत की सांस मिली
इसी बहाने किसी की यारी तो
किसी की गद्दारी तो मिली |

चलो जो हुआ अच्छा हुआ !
 

~"नीरज"~

रविवार, 10 जून 2012

मेरे कॉलेज मित्रों को समर्पित एक पोस्ट


यादों की पोटली समेत रहा था ,
सोचा आप को भी अतीत की खुशबू से महकाता चलूँ |

बीत गए साल वो रंगीन
अब शुरुआत हुई है जिन्दगी की संगीन |

बरसों से बुने सपनों को यथार्थ के धरातल पर

 उतारने का समय आ गया |
ऐ दोस्त , अब तेरे और मेरे बिछड़ने का समय आ गया |

मंजिल की भाग - दौड़ में मशरूफ जरुर हो जाना पर मगरूर नहीं ,

कामयाबी के सफ़र में मशहूर हो जाना पर मजबूर नहीं |

जो कभी याद मेरी आये ,

चले आना ख्वाबों  के अंजुमन में
यादो के शिकारे पर बैठ कर ,
दुःख को सुख में घोलकर पियेंगे ,
जिन्दगी के वो बीते पल फिर दिल खोलकर जियेंगे |

~"नीरज"~

और कुछ भी नहीं ....


जिन्दगी नाम है चलती साँसों का
                                     और कुछ भी नहीं .....!
खुशियाँ नाम है मन में मचलती उमंगो का
                                     और कुछ भी नहीं .....!
जिन्दादिली नाम है दिल को ख़ुशी से मिलाने का
                                     और कुछ भी नहीं .....!
आशा नाम है दूर चमकती एक 
रोशनी का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
मंजिल नाम है कांटो पर चलकर लक्ष्य पाने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
यादें नाम है दिल में गहरे उतरे अहसासों का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
आकाश नाम है उमंगो को हदों में बाँध लेने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
दिशा नाम है भूले भटके को रास्ता दिखने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
निशा नाम है थक हार कर कुछ पल सुस्ताने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
ज़मीन  नाम है उछलते
गुरुर को सबक सिखाने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
पानी नाम है हर रंग-ओ-रूप में बदल जाने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
रिश्ते नाम है झूठी उम्मीदों के सहारे जीने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
सपने नाम है हकीकत से कोसों दूर चले जाने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!
मज़बूरी नाम है आकांक्षाओ को जिन्दा दफ़नाने का
                                      और कुछ भी नहीं .....!

~"नीरज"~

गुरुवार, 7 जून 2012


माताजी के जन्म दिवस  पर उन्ही को समर्पित एक पोस्ट



 
मेरी दुनिया मेरा जहा है माँ
मेरी खुशियों का निशां है माँ

मेरे ख्यालो की तरन्नुम है माँ
मेरे होठो की तबस्सुम है माँ

एक सुकून भरा तस्सव्वुर है माँ
शुभकामनाओ का दस्तूर है माँ

माँ तेरे क़दमों में जन्नत बसती है
रहमत बरसती है माँ जब तू हंसती है
माँ तेरी हस्ती में कुछ तो खास है
सीस नवाती तेरे चरणों में कायनात है
मैं क्या लिखूं और मेरी क्या औकात है  |
 
~"नीरज " ~
 

मंगलवार, 5 जून 2012

जनाब आमिर खान साहिब " सत्यमेव जयते "



जैसा की आप सभी वाकिफ है आमिर खान साहिब ने इक मुहीम की शुरुआत की है "भारत बदलने की "
देखने में यह उंट के मुंह में जीरा प्रतीत होता है परन्तु कहा जाता है कोशिशे अक्सर कामयाब होती है |इंशाल्लाह  "" खान साहिब "  आपकी कोशिशो में मौला जान बक्शे |
                                  समय समय पर भारत में प्रबुद्धजनो  द्वारा ऐसे कोशिशे अजमाइश होती रही है परन्तु फिर भी रोगों को जड़ मूल से
मिटाने में नाकामयाब रहे और जब तक जड़ो का खात्मा नहीं होगा उनकी शाखाये पुन: पनप जाएँगी |
आमिर खान साहिब 100  मिनट के कार्यक्रम में बहुत से प्रयास करते है भिन्न भिन्न प्रकार की कुरीतियों को मिटाने के लिए |
आपके विचार में :
* क्या आमिर खान अपनी मुहीम को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे ?
* क्या भारत में मात्र 13 मुद्दों पर चर्चा करना ही काफी है ?
* क्या आमिर खान की समझाइश भारत के नागरिको पर काम करेगी ?
* क्या आमिर खान भारत को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कर पायेंगे ?

आपके वोट के इन्तेजार में .. कुछ दिलसे | आप एक से अधिक मत भी दे सकते है |


दायीं ओर दिए गए poll  में अपना मत दे 

रविवार, 3 जून 2012

यादें ...


अजीब सा राबता है यादों का इंसान से, जन्म से मरण तक यादें साथ चलती है और फिर यादे अमर हो जाती है | हर गुज़रा लम्हा एक याद है | यादें कुछ मीठी कुछ खट्टी कुछ कोमल कुछ कठोर | पर यादों की खुशबू बहुत मनमोहक होती है | कुछ पल के लिए इंसान को सबकुछ भुलाकर उसके माज़ी (past) से मिला देती है | वर्तमान की सूदबुद खो बैठता है इंसान | यादें जो गुज़रे लम्हे में पैदा होती है और वक़्त के साथ उम्रदराज़ होती जाती है | और धीरे धीरे यादों की छवि स्मृति में धुंधली होती जाती है | पर कुछ यादें चटख रंग की तरह हर दिन हर पल इन्सान की दिमाग में ताज़ा रहती है जो अपने आगमन के साथ एक ख़ुशी , एक चमक, एक लालिमा बिखेर देती है  इन्सान के चहरे पर उसके मानस पटल पर |
                  इंसान वक़्त के पीछे चलता है और इंसान के पीछे यादें | यादें ही है जो इंसान का साथ कभी नहीं छोडती |  देर - सवेर, भीड़ में , तन्हाई में , आ ही जाती है | और इंसान खो जाता है उन अतीत के लम्हों में एक बार फिर उन्हें जीने की कोशिश  में लग जाता  है | हालाँकि आज के भाग - दौड़ वाली सभ्यता में याद जैसी चीज़ के लिए समय नहीं है और ना ही दिमाग में इतनी जगह के उसे संजोया जा सके पर याद का नाता इंसान से कभी नहीं छुट सकता | वह कभी ना कभी किसी ना किसी तरह इंसान के ज़ेहन में अपनी दस्तक दे ही देती है |
                           वक़्त बीत जाने पर बस याद ही रह जाती है जैसे आग के जलने पर राख रह जाती है | आप भी याद कीजिये कोई मीठी सी याद, ऊपर लिखे लफ्जों के म'आनी (meaning) मिल जाएंगे आपको |

                                              ~"नीरज"~  

शनिवार, 2 जून 2012

जिन्दगी की रेल 


अरमान नगर से चलकर हकीकत शहर को जाने
वाली इस पसेंज़र ने 

जीवन के मानव रही फाटक पर बहुत से
ख्वाबो को कुचला है 

जब भी यह गाडी आकांक्षाओ के विपरीत दिशा में चली है
बहुत से सपनो की मौत हुई है और 
बहुत से अरमान घायल हुए है

यथार्थ के धरातल पर जब यह ट्रेन रुकी है तो संभावनाए,
अपेक्षाओ उतरी और वास्तविकता ने गाडी में कदम रखे |

~"नीरज"~
 

गुरुवार, 31 मई 2012

जिन्दगी की कहानी



 

गर्मी, सर्दी , बरसात सब एक कहानी है
हर सांस में चलना ही जिन्दगी की रवानी है  |

रुकना, थकना, थमना सब बाते पुरानी है

चदते सूरज की सूरत ही सबसे सुहानी है |

मेहनत के पेड़ पर शहद सुना बुजुर्गो की जुबानी है

कोशिशों के दायरे में आज वही बात दोहरानी है |

पा ना सके लक्ष्य तो बेकार ये जवानी है

चल के देख दो कदम मंजिल तो तेरी दीवानी है |

~"नीरज"~

मंगलवार, 29 मई 2012

फेसबुक


(मेरी लम्बी कविता "facebook" के कुछ सम्पादित अंश )

हर चेहरे पर चर्चे हैं "facebook" के

दोस्त बनाते है हम देश दूर के
फोटो चिपकाते है "close look " के
दोस्त चिढाते भी है Poke Poke के

username के साथ जब password कोई लिखता है

और login के button पर जैसे ही चटखा (click) लगता है
एकाएक दिल धडकता है |

कुछ notification होंगे जिन्हें पढ़कर दिलो को कुछ satisfaction मिलता है

कुछ अनजाने चेहरे दोस्ती का हाथ लिए खड़े होते है
कुछ सन्देश, reply के इंतजार में पड़े होते है |

बेहतरीन अल्फाजों से, ताज़ातरीन समाचारों से ,

खुबसूरत तस्वीरों से दीवार सजी होती है
बस जल्दी से like करने के इंतज़ार में खड़ी होती है |

सुख से दुःख तक सब छपता है इसकी दीवारों पर

हर कोई टिप्पणी करता है एक दुसरे के विचारो पर

पुरानो के बाद कुछ नये भी यहाँ रोज़ आते है

प्रोफाइल बनाते है, द्रश्य चित्र HD लगते है
smiley रूप में मुस्कुराते है
शिक्षा, दीक्षा सारी बताते है
पर झूठ की बीमारी को यहाँ भी साथ ले आते है |

रोज़ नये चित्र सजाये जाते है

tag लगाकर दोस्त उनपर चिपकाये जाते है
फिर झूठी ही सही तारीफों का सिलसिला चलता है
कुछ आँख मिचकाए, कुछ जीभ चिढाये जाते है |

अरे ! ये तो मेरे साथ दसवी में था

अरे ! ये तो मेरे साथ बस में था
अरे ! ये तो वही नुक्कड़ वाला नाई है
अरे ! ये तो मेरे फुंफाजी का भाई है

ऐसे पहचान निकलते है जैसे जिगर से जान निकलते है

फिर सबको मैत्री का पैगाम भेजा जाता है
जुड़ते ही दोस्ती का पहला सलाम भेजा जाता है |

झूठी तारीफे पाकर ऐसे खुश होते है की भारत रत्न मिला हो

copy paste कर के ऐसे इतराते है जैसे इनका ही यत्न लगा हो

अब समयरेखा (timeline) आ गई है जो सबके मन को भा गई है

मार्क जुकरबर्ग की शादी तो पुरे वातावरण में छा गई है
यह तो समझदार था इसकी मति क्या घास चरने गई है

और सुनो ~

जैसे ही female लिखा दिखता है
झट से add friend पर चटखा लगता है
पुरुष बेचारे मेरे जैसे
यहाँ भी मुफलिसी का सामना करना पड़ता है |

कुछ हरी बत्ती जगा कर अपने होने का अहसास करवाते है

और कुछ offline mode में यहाँ भी दुरी चाहते है
कुछ ने आमिर की फोटो यूँ लगाई है
जैसे कोई मेरे दूर के रिश्ते का भाई है
कुछ ये बताते है की मैं भी हूँ
कुछ ये जताते है की मैं ही हूँ |

जो शामे हरे पत्तो की सोहबत में कटा करती थी (we used to play in gardens.)

वो अब हरी बत्ती की ग़ुरबत में गुजर जाती है |

शुक्र है ! मार्क जुकरबर्ग को आरक्षण का ख्याल नहीं आया

इसीलिए यहाँ दोस्तों की list में आंकड़ों का मायाजाल नहीं लाया
वरना OBC को 5 extra friend मिलते
और GENERAL को दिन में 2 बार ही login के मोके मिलते |

 


~"नीरज"~
 
( यह पुर्णतः मेरी मौलिक रचना है | सर्वाधिकार सुरक्षित )

रविवार, 27 मई 2012

मुस्कान :)


मन में पैदा हुई 
होठो पर पली - बढ़ी और
 दिल में गहरी उतर गई ।

जिन आँखों ने देखा उनको सहला गई 
जिस आँगन से गुजरी उसको महका गई ।

बच्चो के किलकारी से लेकर 
बूढ़ों के ठहाके तक पहुँच है मेरी ।

दिल  से  होठो का राब्ता बनाती हूँ 
थके चहरो को शगुफ्ता बनाती हूँ ।

मुस्कान - बस छोटी सी उम्र है मेरी 
जब तक मनहूस गुस्से के हत्थे ना चढ़ी ।

~"नीरज"~

शनिवार, 26 मई 2012

जिन्दगी के सफ़र में ....!

 

जिन्दगी के सफ़र में जब तु  चला है
तो याद रखना .............................


राहें लम्बी हैं,
कुछ मील पथरीली तो कुछ मील
जहरीली हैं
सफ़र में तुझे रुसवाई मिलेगी
विफलताओ की बड़ी सी खाई मिलेगी

हर मोड़ पर नाकामयाबी की सराय मिलेगी

हर जोड़  के तोड़ पर वकील रायचंद की राय मिलेगी

बारिस, आंधी, तूफान हर रुत के सामान मिलेंगे

जायेगा जिस दिशा में बहुत से उलटे पाँव मिलेंगे

महफ़िल, महल , मकान सब कुछ आलिशान मिलेंगे

रुकना नहीं की तुझे हार के बहुत से सामान मिलेंगे

सफ़र लम्बा है, बढ़ते कदमो पर अपेक्षा के द्वार मिलेंगे

थके, सुस्त  कदमो को विफलताओ के गुब्बार मिलेंगे
चुस्त, चालाक  इरादों को सफलताओ के अम्बार मिलेंगे


ऐ मेरे यार, तुझे हर बार, बहुत से यार मिलेंगे

कुछ झूठ से लबालब, निराशा के शिकार मिलेंगे
कुछ सच के प्रहरी पहरेदार मिलेंगे

ठहरना नहीं किसी के कहने पर, ऐसे भी तुझे यार मिलेंगे
चलना जिन्दगी का सबब है, चलने पर ही जीत के दीदार मिलेंगे 
रुके, ठहरे, सहमे मुसाफिर को तो बस श्मशान  के  द्वार मिलेंगे


~"नीरज"~


  सोच कहाँ से लाऊं !



कागज़, कलम , इरादा सब है मेरे पास
पर वो शायर वाली सोच कहाँ से लाऊं |


शब्द, सार्थकता, साहित्य सब है मेरे पास
पर नज़्म का आगाज़ कहाँ से लाऊं |

जज्बा , जज़्बात, जोश सब है मेरे पास
पर तस्सवुर की परवाज़ कहाँ से लाऊं |

उनवान, उपमा, अलंकार सब है मेरे पास
पर मैं सांच की बात कहाँ से लाऊं |

~"नीरज"~